Saturday 4 April 2015

टेलीविज़न और दिमागी संतुलन

यह हम पर ही निर्भर करता है कि हम टेलीविज़न पर दिखाये जाने वाली किसी भी विषय वस्तु को किस तरह से लेते है। मैंने अक्सर कुछ लोगों को देखा है क्राइम से जुडी कहानियों को देखते देखते उन सभी विषयों को वह इंसान स्वयं पर हावी कर बैठते है। फिर हर किसी पर शक करना और पूरी दुनिया के बारे में एक गलत धारणा बना लेते है। टीवी पर जो क्राइम से जुड़े प्रोग्राम दिखाते है वह हमें अलर्ट करने के लिए हैं ना कि पूरी दुनिया के लिए नकारात्मक सोच बनाने के लिए। सतर्क रहना और नकारात्मक सोच में अंतर होता है। दुनिया में अच्छे बुरे दोनों तरह के लोग ही होते है। अगर किसी का दिमाग यह सब स्वीकार नहीं कर पाता तो उसे यह सब देखना छोड़ देना चाहिए। फिर वह इंसान दुनिया के प्रति अपनी सोच नकारात्मक बना लेते है और धीरे-धीरे मानसिक बीमारी के भी शिकार हो जाते है। मेरा खुद का मानना यह है की ज़्यादातर लोग अच्छे ही होते है, कुछ बुरे लोगों की करतूत के वजह से अच्छाइ पर बुराई हावी हो गयी।। 

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